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कविता

जितनी : उतनी

ज्ञानेंद्रपति


दिवस-छोरों पर
जितनी उषाएँ हैं
उतनी संध्याएँ हैं -
मनस-कोरों पर भी

 


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हिंदी समय में ज्ञानेंद्रपति की रचनाएँ